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शुक्रवार, सितंबर 30, 2011

मां कूष्माण्डा के पूजन से रोग, शोक और क्लेश का नाश होता हैं

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चतुर्थ कूष्माण्डा
नवरात्र के चतुर्थ दिन मां के कूष्माण्डा स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। अपनी मंद हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड को उत्पन्न किया था इसीके कारण इनका नाम कूष्माण्डा देवी रखा गया।
शास्त्रोक्त उल्लेख हैं, कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तो चारों तरफ सिर्फ अंधकार हि था। उस समय कूष्माण्डा देवी ने अपने मंद सी हास्य से ब्रह्मांड कि उत्पत्ति कि। कूष्माण्डा देवी सूरज के घेरे में निवास करती हैं। इसलिये कूष्माण्डा देवी के अंदर इतनी शक्ति हैं, जो सूरज कि गरमी को सहन कर सकें। कूष्माण्डा देवी को जीवन कि शक्ति प्रदान करता माना गया हैं।
कूष्माण्डा देवी का स्वरुप अपने वाहन सिंह पर सवार हैं, मां अष्ट भुजा वाली हैं। उनके मस्तक पर रत्न जडि़त मुकुट सुशोभित हैं, जिस्से उनका स्वरूप अत्यंय उज्जवल प्रतित होता हैं। उनके हाथमें हाथों में क्रमश: कमण्डल,  माला, धनुष-बाण, कमल, पुष्प, कलश, चक्र तथा गदा सुशोभित रहती हैं।

मंत्र:
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तुमे।।

ध्यान:-
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभांअनाहत स्थितांचतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलशचक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बरपरिधानांकमनीयाकृदुहगस्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणरत्‍‌नकुण्डलमण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनांनारू चिकुकांकांत कपोलांतुंग कूचाम्।
कोलांगीस्मेरमुखींक्षीणकटिनिम्ननाभिनितम्बनीम्॥

स्त्रोत:-
दुर्गतिनाशिनी त्वंहिदारिद्रादिविनाशिनीम्। जयंदाधनदांकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्रीजगदाधाररूपणीम्। चराचरेश्वरीकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरीत्वंहिदु:ख शोक निवारिणाम्। परमानंदमयीकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥

कवच:-
हसरै मेशिर: पातुकूष्माण्डेभवनाशिनीम्। हसलकरींनेत्रथ,हसरौश्चललाटकम्॥ कौमारी पातुसर्वगात्रेवाराहीउत्तरेतथा। पूर्वे पातुवैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणेमम। दिग्दिधसर्वत्रैवकूंबीजंसर्वदावतु॥

मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति का अनाहत चक्र जाग्रत हो हैं। मां कूष्माण्डाका के पूजन से सभी प्रकार के रोग, शोक और क्लेश से मुक्ति मिलती हैं, उसे आयुष्य, यश, बल और बुद्धि प्राप्त होती हैं।
>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2011)
OCT-2010

गुरुवार, सितंबर 29, 2011

नवरात्री में संपन्न करें नवार्ण मन्त्र साधना

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नवरात्री में संपन्न करें नवार्ण मन्त्र साधना
नवार्ण मन्त्र साधना
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर-2011)

विनियोगः-
अस्य श्री नवार्ण मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा ऋषिः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंदांसि, महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यः देवताः, नंदजा शाकुंभरी भीमाः शक्तयः, रक्तदंतिका दुर्गा भ्रामयो बीजानि, ह्रौं कीलकम्, अग्निवायु सूर्यास्तत्वानि, कार्य निर्देश जपे विनियोग।
नवार्ण मन्त्र:
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
नवार्ण भेद मन्त्र:
शास्त्रों में नवार्ण मन्त्र को अपने आप में अत्यन्त सिद्ध एवं प्रभावयुक्त माना गया हैं। नवार्ण मन्त्र को मन्त्र और तन्त्र दोनो में समान रुप से प्रयोग किया जाता हैं।
नवार्ण मन्त्र के शीघ्र प्रभावि प्रयोग आपके मार्गदर्शन हेतु दिये जारहे हैं।

चेतावनी:
नवार्ण मन्त्र का प्रयोग अति सावधानी से एवं योग्य गुरु, विद्वान ब्राह्मण अथवा जानकार की सलाह से करना चाहिए।

नवार्ण मोहन मन्त्र:
नवार्ण मोहन मन्त्र के बारह लाख जप करने का विधान हैं। इस प्रयोग को करने हेतु सात कुओं या नदियों का जल ताम्रकलश में लेकर उसमें आम के पत्ते डालकर नित्य उसी पानी से स्नान करना चाहिए। ललाट पर पीले चन्दन का तिलक करना चाहिए और शरीर पर पीले रंग के वस्त्र ही धारण करने चाहिए और पीले रंग के आसन का प्रयोग करना चाहिए। साधक को पश्चिम की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए। बारह लाख मन्त्र जपने से यह कार्य सिद्ध होता हैं।
नवार्ण मोहन मन्त्र:
क्लीं क्लीं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे (अमुकं) क्लीं क्लीं मोहनम् कुरु कुरु क्लीं क्लीं स्वाहा।
***
नवार्ण उच्चाटन मन्त्र:
नवार्ण उच्चाटन मन्त्र के ……………..>>
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नवार्ण वशीकरण मन्त्र:
इस प्रयोग को बीस दिनो में संपन्न करने का विधान हैं। नदी, तालाब या कुएं के नवार्ण उच्चाटन मन्त्र के ……………..>>
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नवार्ण स्तंभन मन्त्र:
इस प्रयोग में साधक को पूर्व नवार्ण उच्चाटन मन्त्र के ……………..>>
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नवार्ण विद्वेषण मन्त्र:
इस प्रयोग में साधक को उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए। तथा काले रंग का ……………..>>
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नवार्ण महामन्त्र:
इस मन्त्र के उच्चारण मात्र से देवी मां प्रसन्न होती हैं। यह संपूर्ण नवार्ण महामंत्र हैं। ……………..>>
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संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष -पत्रिका अक्टूबर-2011 का अंक पढें

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>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2011)
OCT-2011


मां ब्रह्मचारिणी के पूजन अनंत फल कि प्राप्ति होती

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द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। क्योकि ब्रह्म का अर्थ हैं तप। मां ब्रह्मचारिणी तप का आचरण करने वाली भगवती हैं इसी कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।   Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
शास्त्रो में मां ब्रह्मचारिणी को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया हैं।  शास्त्रो में ब्रह्मचारिणी देवी के स्वरूप का वर्णन पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत दिव्य दर्शाया गया हैं।    Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र पहने  उनके दाहिने हाथ में अष्टदल कि जप माला एवं बायें हाथ में कमंडल सुशोभित रहता हैं। शक्ति स्वरुपा देवी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर तपस्या रत रहीं और 3000 साल तक शिव कि तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर कि, उनकी इसी कठिन तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।   Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

मंत्र:
दधानापरपद्माभ्यामक्षमालाककमण्डलम्। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।   Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

ध्यान:-
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधरांब्रह्मचारिणी शुभाम्।
गौरवर्णास्वाधिष्ठानस्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्।
पदमवंदनांपल्लवाधरांकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखींनिम्न नाभिंनितम्बनीम्।।

स्तोत्र:-
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारणीम्। ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणींप्रणमाम्यहम्।।
नवचग्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्। धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी शांतिदामानदाब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

कवच:-  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
त्रिपुरा मेहदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी। अर्पणासदापातुनेत्रोअधरोचकपोलो॥ पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमाहेश्वरी षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो। अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति को अनंत फल कि प्राप्ति होती हैं। व्यक्ति में  तप, त्याग, सदाचार, संयम जैसे सद् गुणों कि वृद्धि होती हैं।  Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
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OCT-2010

बुधवार, सितंबर 28, 2011

शारदीय नवरात्र व्रत से सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं।

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शारदीय नवरात्र व्रत से सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर-2011)
नवरात्र को शक्ति की उपासना का महापर्व माना गया हैं। मार्कण्डेयपुराण के अनुशार देवी माहात्म्य में स्वयं मां जगदम्बा का वचन हैं-। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

शरत्काले महापूजा क्रियतेया चवार्षिकी।
तस्यांममैतन्माहात्म्यंश्रुत्वाभक्तिसमन्वित:
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तोधनधान्यसुतान्वित: 
मनुष्योमत्प्रसादेनभविष्यतिन संशय:॥ Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH

अर्थातः शरद ऋतु के नवरात्रमें जब मेरी वार्षिक महापूजा होती हैं, उस काल में जो मनुष्य मेरे माहात्म्य (दुर्गासप्तशती) को भक्तिपूर्वकसुनेगा, वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न हो जायेगा। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
नवरात्र में दुर्गासप्तशती को पढने या सुनने से देवी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं एसा शास्त्रोक्त वचन हैं।  सप्तशती का पाठ उसकी मूल भाषा संस्कृत में करने पर ही पूर्ण प्रभावी होता हैं। Post By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
व्यक्ति को श्रीदुर्गासप्तशती को भगवती दुर्गा का ही स्वरूप समझना चाहिए। पाठ करने से पूर्व श्रीदुर्गासप्तशती कि पुस्तक का इस मंत्र से पंचोपचारपूजन करेंPost By : GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH
नमोदेव्यैमहादेव्यैशिवायैसततंनम: नम:प्रकृत्यैभद्रायैनियता:प्रणता:स्मताम्॥ 
जो व्यक्ति दुर्गासप्तशतीके मूल संस्कृत में पाठ करने में असमर्थ हों तो उस व्यक्ति को सप्तश्लोकी दुर्गा को पढने से लाभ प्राप्त होता हैं। क्योकि सात श्लोकों वाले इस स्तोत्र में श्रीदुर्गासप्तशती का सार समाया हुवा हैं।
जो व्यक्ति सप्तश्लोकी दुर्गा का भी कर सके वह केवल नर्वाण मंत्र का अधिकाधिक जप करें।
देवी के पूजन के समय इस मंत्र का जप करे।
जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधानमोऽस्तुते॥
देवी से प्रार्थना करें-

विधेहिदेवि कल्याणंविधेहिपरमां -श्रियम्।रूपंदेहिजयंदेहियशोदेहिद्विषोजहि॥
अर्थातः हे देवि! आप मेरा कल्याण करो। मुझे श्रेष्ठ सम्पत्ति प्रदान करो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध इत्यादि शत्रुओं का नाश करो।

विद्वानो के मतानुशार सम्पूर्ण नवरात्रव्रत का पालन करने में जो लोगों असमर्थ हो वह नवरात्र के सात रात्री,पांच रात्री, दों रात्री और एक रात्री का व्रत करके भी विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं। नवरात्र में नवदुर्गा की उपासना करने से नवग्रहों का प्रकोप स्वतः शांत हो जाता हैं।

>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2011)

OCT-2011