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सोमवार, जुलाई 04, 2011

महामृत्युंजय अकाल मृत्यु एवं असाध्य रोगों से मुक्ति

महामृत्युंजय
अकाल मृत्यु एवं असाध्य रोगों से मुक्ति के लिये शीघ्र प्रभावि उपाय


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ମହାମୃତ୍ୟୁନ୍ଜୟ ଅକାଲ ମୃତ୍ୟୁ ଏବଂ ଅସାଧ୍ଯ ରୋଗ ରୁ ମୁକ୍ତି mahamrutyunjay akala mrutyu evam asadhy rogon se mukti, yantr, yantr, mahamrutyunjay asadhy rogon akal mrutyu se mukti, kavac, mantr, maMtr, maha mrutyunjay roga nidana, maha mrutyunjay roga nivarana, maha mrutyunjay roga, maha mrutyunjay svasthya, maha mrutyunjay va rogake samaya kA gnna, maha mrutyunjay prabhava aura roga, roga ke prabhava ka maha mrutyunjay se nivaaran,maha mrutyunjay roga Shanti ke upaya, maha mrutyunjay roga Shanti, maha mrutyunjay roga nivarana, Healing maha mrutyunjay, maha mrutyunjay prevention, maha mrutyunjay disease, maha mrutyunjay disease, maha mrutyunjay and Arogce time, knowledge of planetary effects on the body part and disease, maha mrutyunjay while the impact of disease, maha mrutyunjay and disease of peace Measures, disease, maha mrutyunjay peace, maha mrutyunjay disease prevention

मानव शरीर में जो भी रोग उत्पन्न होते हैं उसके बारे में शास्त्रो में जो उल्लेख हैं वह इस प्रकार हैं
"शरीरं व्याधिमंदिरम्" अर्थात् ब्रह्मांड के पंच तत्वों से उत्पन्न शरीर में समय के अंतराल पर नाना प्रकार की आधि-व्यघि पीडा़ए उत्पन्न होती रहती हैं।

ज्योतिष शास्त्र एवं आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य द्वारा पूर्वकाल में किये गयें कर्मो का फल ही व्यक्ति के शरीर में विभिन्न रोगों के रूप में प्रगट होतें हैं।

हरित सहिंता के अनुशार:
जन्मान्तर कृतम् पापम् व्याधिरुपेण बाधते।
तच्छान्तिरौषधैर्दानर्जपहोमसुरार्चनैः॥
अर्थातः पूर्व जन्म में किये गये पाप कर्म ही व्याधि के रूप में हमारे शरीर में उत्पन्न हो कर कष्टकारी हो जाता हैं। तथा औषध, दान, जप, होम व देवपूजा से रोग की शांति होती हैं।

शास्त्रोक्त विधान के अनुशार देवी भगवती ने भगवान शिव से कहा कि, हे देव! आप मुझे मृत्यु से रक्षा करने वाला और सभी प्रकार के अशुभों का नाश करने वाल कवच बतलाईये? तब शिवजी ने महामृत्युंजय कवच ……………..>>


अमोद्य् महामृत्युंजय कवच व उल्लेखित अन्य सामग्रीयों को शास्त्रोक्त विधि-विधान से विद्वान ब्राह्मणो द्वारा सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जप एवं दशांश हवन द्वारा निर्मित कवच अत्यंत प्रभावशाली होता हैं।
अमोद्य महामृत्युंजय कवच धारण कर अन्य सामग्री को अपने पूजा स्थान में स्थापित ……………..>>
मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण ही इस मंत्र को मृत्युंजय कहा जाता है। महामृत्यंजय मंत्र की महिमा का वर्णन शिव पुराण, काशीखंड और महापुराण ……………..>>


महामृत्युंजय मंत्र का महत्व:
मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात् तस्मान्मृत्युंजय: स्मृत: या मृत्युंजयति इति मृत्युंजय,
अर्थात: जो मृत्यु को जीत ले, उसे ही मृत्युंजय कहा जाता है।

मंत्र जप के लिए विशेष:
यः शास्त्रविधि मृत्सृज्य वर्तते काम कारतः। न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परांगतिम्॥ (श्रीमद् भगवद् गीता:षोडशोऽध्याय)
भावार्थ : जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को ही॥23॥

ज्योतिषशास्त्र के अनुशार दुख, विपत्ति या मृत्य के प्रदाता एवं निवारण के देवता शनिदेव हैं, क्योकि शनि व्यक्ति के कर्मो के अनुरुप व्यक्ति को फल प्रदान करते हैं। शास्त्रो के अनुशार मार्कण्डेय ऋषि का जीवन अत्यंत अल्प था, परंतु महामृत्युंजय मंत्र के जप से शिव कृपा प्राप्त कर उन्हें चिरंजीवी ……………..>>


संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष ई-पत्रिका मई-2011 का अंक पढें।

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>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (मई-2011)
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