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बुधवार, फ़रवरी 09, 2011

विद्या प्राप्ति में रुकावट के योग

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विद्या प्राप्ति में रुकावट के योग


शिक्षा प्राप्ति में बाधा के योग
जन्म कुंडली में उच्च शिक्षा का योग होने पर भी कभी-कभी उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता। इस का कारण हैं, शिक्षा प्राप्ति में रुकावट करने वाले योग।
विद्वानो के मत से ज्यादातर शिक्षा प्राप्ति के समय यदि राहु की महादशा चल रही हो पढ़ाई में रुकावट आती है।
यदि पंचमेश 6, 8 या 12 वें भाव में स्थित हो या किसी अशुभ ग्रह के साथ स्थित हो या अशुभ ग्रह से द्दष्ट हो, तो जातक उचित शिक्षा प्राप्त नहीं कर या उसकी शिक्षा प्राप्ति बाधा आती हैं।
यदि जातक में गुरु या बुध 3, 6, 8 या 12 वें भाव में स्थित हो, शतृगृही हो, तो शिक्षा प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करता है।

फलदीपिका के अनुशार
वित्तम् विद्या स्वान्नपानानि भुक्तिम् दक्षाक्ष्यास्थम् पत्रिका वाक्कुटुबम्म॥
(फलदीपिका अध्याय १ श्लोक १०)
अर्थातः धन, विद्या, वाणी एवं स्वयं के अधिकार की वस्तु इत्यादि का विचार द्वितीय भाव से करना चाहिए।

यदि जन्म कुंडली में अष्टम भाव में नीच ग्रह, अशुभ, पापी या क्रूर ग्रह स्थित होने से भी जातक कई बार उच्च शिक्षा की प्राप्ति कर लेता हैं। इस स्थिती में जातक को दूरस्थ स्थान या विदेश में विद्याध्ययन के योग बनते हैं।
यदि जन्म कुंडली में द्वितीय भाव में अशुभ ग्रह स्थित हो या अशुभ ग्रहो का प्रभाव हो, तो विद्या प्राप्ति में बाधा हो सकती हैं।
यदि जन्म कुंडली में सूर्य, शनि एवं राहु की अलग-अलग द्रष्टी ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में अकेला गुरु द्वितीय भाव में स्थित हो, तो ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में अकेला शुक्र द्वितीय ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में शुक्र अष्टम भाव में स्थित हो कर द्वितीय भाव ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में राहु 6,8 या 10 भाव में स्थित हो, तो जातक का ……………..>>
यदि जन्म कुंडली में शनि पंचम भाव या अष्टम भाव में स्थित हो, तो भी शिक्षा अधुरी रहती हैं ……………..>>

शिक्षा में अवरोध उत्पन्न करने वाले कारण
यदि जातक में राहु अगर पंचम भाव में पंचमेश से युत या दृष्ट हो और ……………..>>
यदि जातक में पंचमेश द्वादश भाव में स्थित होकर अस्त हो या नीच राशि में स्थित हो, या अन्य ……………..>>यदि जातक में द्वितीय भाव का स्वामी नवम भाव में निर्बल हो, पाप पीड़ित हो तो ……………..>>
यदि जातक में बुध और गुरु निर्बल हो, त्रिक भाव में हो, अस्त हो, अशुभ ग्रह से पीड़ित हो……………..>>
विद्या अध्ययन की आयु में यदि अशुभ ग्रह की महादशा, अंतरदशा, शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव ……………..>>
शनि पंचम भाव से त्रिकोण में गोचर कर रहा हो या गुरु पंचमेश से त्रिकोण में गोचर ……………..>>
यदि जातक में पंचम भाव, पंचमेश, तृतीयेश, बुध या गुरु पर एकाधिक ग्रहों का अशुभ प्रभाव हो, तो विद्या प्राप्ति में व्यवधान आता हैं और ……………..>>


विद्या प्राप्ति में आनेवाली बाधाओं से मुक्ति के लिये ग्रह शांति के उपाय करने चाहिए।

नोट : यदि ग्रहों की अशुभ स्थिति के कारण या अन्य कारणों से विद्या प्राप्ति में बाधा आ रही हो अथवा स्मरण शक्ति कमजोर हो या एकाग्रता की कमी हो, सरस्वती कवच एवं यंत्र का प्रयोग करने से लाभ प्राप्त होता हैं।


शिक्षा प्राप्ति की बाधाएं दूर करने के उपाय
यदि जन्म कुंडली में उच्च शिक्षा का योग हो, किंतु विद्याध्ययन के समय अशुभ ग्रह की दशा के कारण रुकावटे आने का योग हो या रुकावटे आरही हो, तो संबंधित ग्रह की शांति हेतु ग्रह से संबंधित यंत्र को अपने घर में स्थापित करना लाभदायक होता हैं। ग्रहो के अशुभ प्रभाव को कम करने हेतु अन्य उपायो को भी अपनाया जासकता हैं।
बच्चे को विद्वान बनाने के लिये प्रति बुधवार या पंचमी के दिन चांदी की शलाका को मधु में डुबाकर बच्चे की जिह्वा(जीभ) पर "ऎं" मंत्र लिखे।

लग्न के अनुशार रत्न धारण से विद्या प्राप्ति
मेष लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु माणिक्य धारण करना चाहिये।
वृष लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु पन्ना धारण करना चाहिये।
मिथुन लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु हीरा धारण करना चाहिये।
कर्क लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु मूंगा धारण करना चाहिये।
सिंह लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु पीला पुखराज धारण करना चाहिये।
कन्या लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु नीलम धारण करना चाहिये।
तुला लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु नीलम धारण करना चाहिये।
वृश्चिक लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु पीला पुखराज धारण करना चाहिये।
धनु लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु मूंगा धारण करना चाहिये।
धनु लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु हीरा धारण करना चाहिये।
कुंभ लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु पन्ना धारण करना चाहिये।
मीन लग्न वाले जातक को विद्या प्राप्ति हेतु मोती धारण करना चाहिये।

परीक्षा में मनोनुकूल फल प्राप्त करने हेतु तो किसी मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से लेकर अगले कृष्ण पक्ष की पंचमी तक अर्थात 15 दिन तक गणेश जी को १०८ दूर्वा ……………..>>
वसंत पंचमी के दिन सरस्वती जी की पूजा करने के बाद स्फटिक माला ……………..>>
गुरुवार के दिन धर्मिक स्थान पर ……………..>>
बुधवार एवं गुरुवार को किसी जरुर मंद बच्चे को शिक्षा से सांबंधित सहायता करने से लाभ प्राप्त होता हैं।

विद्या प्राप्ति हेतु श्री गणेशजी के द्वादश नाम का स्मरण करने से शिक्षा से सांबंधित संमस्याएं दूर होती हैं। अतः प्रतिदिन स्नान कर स्वच्छ कपडे पहन कर गणेशजी की प्रतिमा या चित्र के सामने इस श्लोक का अपनी श्रद्धा के अनुशार पाठ करें।

शुक्लाम्बरं धरंदेव शशिवर्णं चतुर्भुजम। प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वाविनोपशान्तये॥
सुमुखश्चैक दन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लंबोदरश्च विकटो विन नाशो विनायकः॥
धूम्र केतुर्गणाध्यक्षो भाल चंद्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानियः पठेच्छुणयादडिप॥
प्रतिमाह दोनो पक्षो की गणेश चतुर्थी को गणेश जी की विधिवत पूजा-अर्चना करके ॐ गं गणेशाय नमः या गं गणेपतये नमः मंत्र का १०८ बार जप करने से विद्या लाभ होता हैं।

अन्य उपाय
सरस्वती से संबंधित मंत्र का नियमित जप करने से विद्या में सफलता के लिए निम्नोक्त मंत्र का जप करना चाहिए।

"ॐ ह्रीं श्रीं ऐं वागवादिनि भगवती अर्हनमुख निवासिनि सरस्वती ममास्ये प्रकाशं कुरू कुरू स्वाहा ऐं नमः।"

इसके साथ ही बुद्धि के प्रमुख देवता प्रथम पूज्य विध्न विनाशक श्री गणेशजी का ध्यान करने से विद्या और बुद्धि का विकास होता हैं एवं विद्याअध्ययन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।

यदि जातक में शिक्षा से संबंधित ग्रह शुभ हो कर निर्बल हो और अपना शुभ प्रभाव देने में असमर्थ हो, तो उसे बल प्रदान करने के लिए उससे संबंधित ग्रह का रत्न भी धारण किया जा सकता है।
यदि जातक का की रुचि शिक्षा के प्रति कम हो, तो उसे ……………..>>

यदि जातक का की रुचि शिक्षा के प्रति कम हो, स्मरण शक्ति एवं तर्क शक्ति बढाने के लिए ……………..>>


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संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष ई-पत्रिका फरवरी-2011 का अंक पढें।

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