Search

Shop Our products Online @

www.gurutvakaryalay.com

www.gurutvakaryalay.in


गुरुवार, अक्तूबर 07, 2010

नवदुर्गा आराधना का महत्व

नवदुर्गा आराधना का महत्व, नवदूर्गा आराधना का महत्व, नवरात्रि में नवदुर्गा आराधना का महत्व, नवरात्री में नवदुर्गा आराधना का महत्व, शक्ति आराधना का महत्व, navadurga aaradhana ka mahatva, navdoorga aradhana ka mahtva, navaratree me navadurga aaradhana ka mahatva, shakti aradhana ka mahatva

नवदुर्गा आराधना का महत्व


नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम्॥

अर्थात: देवी को नमस्कार हैं, महादेवी को नमस्कार हैं। महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार हैं। प्रकृति एवं भद्रा को मेरा प्रणाम हैं। हम लोग नियमपूर्वक देवी जगदम्बा को नमस्कार करते हैं।

उपरोक्त मंत्र से देवी दुर्गा का स्मरण कर प्रार्थना करने मात्र से देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करती हैं। समस्त देव गण जिनकी स्तुति प्राथना करते हैं। माँ दुर्गा अपने भक्तो की रक्षा कर उन पर कृपा द्रष्टी वर्षाती हैं और उसको उन्नती के शिखर पर जाने का मार्ग प्रसस्त करती हैं। इस लिये ईश्वर में श्रद्धा विश्वार रखने वाले सभी मनुष्य को देवी की शरण में जाकर देवी से निर्मल हृदय से प्रार्थना करनी चाहिये।


 
देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोsखिलस्य।
पसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य।

अर्थात: शरणागत कि पीड़ा दूर करने वाली देवी आप हम पर प्रसन्न हों। संपूर्ण जगत माता प्रसन्न हों। विश्वेश्वरी देवी विश्व कि रक्षा करो। देवी आप हि एक मात्र चराचर जगत कि अधिश्वरी हो।


 
सर्वमंगल-मांगल्ये शिवेसर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥
सृष्टिस्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तुते॥

अर्थात: हे देवी नारायणी आप सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरूषार्थों को सिद्ध करने वाली शरणा गतवत्सला तीन नेत्रों वाली गौरी हो, आपको नमस्कार हैं। आप सृष्टि का पालन और संहार करने वाली शक्तिभूता सनातनी देवी, आप गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणी देवी तुम्हें नमस्कार है।
इस मंत्र के जप से माँ कि शरणागती प्राप्त होती हैं। जिस्से मनुष्य के जन्म-जन्म के पापों का नाश होता है। मां जननी सृष्टि कि आदि, अंत और मध्य हैं।


 
देवी से प्रार्थना करें 

शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे
सर्वस्यार्तिंहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥

अर्थात: शरण में आए हुए दीनों एवं पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सब कि पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी आपको नमस्कार है।


 
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रूष्टा तु कामान सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति।

अर्थातः देवी आप प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है। उनको विपत्ति आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।

सर्वबाधाप्रशमनं त्रेलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेव त्वया कार्यमस्यध्दैरिविनाशनम्।

अर्थातः हे सर्वेश्वरी आप तीनों लोकों कि समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे सभी शत्रुओं का नाश करती रहो।


शांतिकर्मणि सर्वत्र तथा दु:स्वप्रदर्शने।
ग्रहपीडासु चोग्रासु महात्मयं शणुयात्मम।

अर्थातः सर्वत्र शांति कर्म में, बुरे स्वप्न दिखाई देने पर तथा ग्रह जनित पीड़ा उपस्थित होने पर माहात्म्य श्रवण करना चाहिए। इससे सब पीड़ाएँ शांत और दूर हो जाती हैं।
इससे जुडे अन्य लेख पढें (Read Related Article)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें