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शनिवार, सितंबर 11, 2010

गणेश चतुर्थी ज्योतिष की नजर में

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गणेश चतुर्थी ज्योतिष की नजर में



गणपति समस्त लोकोंमें सर्व प्रथम पूजेजाने वाले एकमात्र देवाता हैं। गणेश समस्त गण के गणाध्यक्षक होने के कारणा गणपति नाम से भी जाने जाते हैं। मनुष्य को जीवन में समस्त प्रकार कि रिद्धि-सिद्धि एवं सुखो कि प्राप्ति एवं अपनी सम्स्त आध्यात्मिक-भौतिक इच्छाओं कि पूर्ति हेतु गणेश जी कि पूजा-अर्चना एवं आराधना अवश्य करनी चाहिये।

गणेशजी का पूजन अनादिकाल से चला आ रहा हैं, इसके अतिरिक्त ज्योतिष शास्त्रों के अनुशार ग्रह पीडा दूर करने हेतु भगवान गणेश कि पूजा-अर्चना करने से समस्त ग्रहो के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं एवं शुभ फल कि प्राप्ति होती हैं। इस लिये गणेश पूजाका अत्याधिक महत्व हैं।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।

भगवान गणेश सूर्य तेज के समान तेजस्वी हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से सूर्य के प्रतिकूल प्रभाव का शमन होकर व्यक्ति के तेज-मान-सम्मान में वृद्धि होती हैं, उसका यश चारों और बढता हैं। पिता के सुख में वृद्धि होकर व्यक्ति का आध्यात्मिक ज्ञान बढता हैं।

भगवान गणेश चंद्र के समान शांति एवं शीतलता के प्रतिक हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से चंद्र के प्रतिकूल प्रभाव का नाश होकर व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती हैं। चंद्र माता का कारक ग्रह हैं इस लिये गणेशजी के पूजन से मातृसुख में वृद्धि होती हैं।

भगवान गणेश मंगल के समान शिक्तिशाली एवं बलशाली हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से मंगल के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और व्यक्ति कि बल-शक्ति में वृद्धि होती हैं। गणेशजी के पूजन से ऋण मुक्ति मिलती हैं। व्यक्ति के साहस, बल, पद और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती हैं जिस कारण व्यक्ति में नेतृत्व करने कि विलक्षण शक्ति का विकास होता हैं। भाई के सुख में वृद्धि होती हैं।

गणेशजी बुद्धि और विवेक के अधिपति स्वामि बुध ग्रह के अधिपति देव हैं। अत: विद्या-बुद्धि प्राप्ति के लिए गणेश जी की आराधना अत्यंत फलदायी सिद्धो होती हैं। गणेशजी के पूजन से वाकशक्ति और तर्कशक्ति में वृद्धि होती हैं। बहन के सुख में वृद्धि होती हैं।

भगवान गणेश बृहस्पति(गुरु) के समान उदार, ज्ञानी एवं बुद्धि कौशल में निपूर्ण हैं। गणेशजी का पूजन-अर्चन करने से बृहस्पति(गुरु) से संबंधित पीडा दूर होती हैं और व्यक्ति कें आध्यात्मिक ज्ञान का विकास होता हैं। व्यक्ति के धन और संपत्ति में वृद्धि होती हैं। पति के सुख में वृद्धि होती हैं।

भगवान गणेश धन, ऐश्वर्य एवं संतान प्रदान करने वाले शुक्र के अधिपति हैं। गणेशजी का पूजन करने से शुक्र के अशुभ प्रभाव का शमन होता हैं। व्यक्ति को समस्त भौतिक सुख साधन में वृद्धि होकर व्यक्ति के सौन्दर्य में वृद्धि होती हैं। पति के सुख में वृद्धि होती हैं।

भगवान गणेश शिव के पुत्र हैं। भगवान शिव शनि के गुरु हैं। गणेशजी का पूजन करने से शनि से संबंधित पीडा दूर होती हैं। भगवान गणेश हाथी के मुख एवं पुरुष शरीर युक्त होने से राहू व केतू के भी अधिपति देव हैं। गणेशजी का पूजन करने से राहू व केतू से संबंधित पीडा दूर होती हैं। इसलिये नवग्रह कि शांति मात्र भगवान गणेश के स्मरण से ही हो जाती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं हैं। भगवान गणेश में पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास कि आवश्यक्ता हैं। भगवान गणेश का पूजन अर्चन करने से मनुष्य का जीवन समस्त सुखो से भर जाता है।

जन्म कुंडली में चाहें होई भी ग्रह अस्त हो या नीच हो अथवा पीडित हो तो भगवान गणेश कि आराधना से सभी ग्रहो के अशुभ प्रभाव दूर होता हैं एवं शुभ फलो कि प्राप्ति होती हैं।
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