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मंगलवार, जनवरी 19, 2010

सरस्वती स्तोत्र

Saraswati Stotra
॥सरस्वती स्तोत्र॥

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमा माद्या जगद्व्यापिनीं।



वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ॥१॥


हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां।


वंदे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥२॥



भावार्थ: शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार स्वरूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से अभयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को दूर करने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली एवं पद्मासन पर विराजमान बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हू।
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